Friday, January 4, 2013

दिल्ही गेंगरेप घटना..... सिर्फ विरोध काफी नहीं ।



दिल्ही गेंगरेप की घटना, क्यूंकी राजधानी मे घटी शायद इसी लिए ज्यादा फैली । विरोध भी काफी हुआ, कहीं विरोध का भी विरोध हुआ। वैसे ऐसी घटनाओ का विरोध हो और उसमे युवा जुड़े उससे अच्छी बात कोई हो ही नहीं सकती । कही बलात्कारिओं को मृत्युदण्ड देने की वकालत चली, कही ऐसे लोगो को नपुसंक बना के जीवनभर अपने पापों की सजा ढोने की सजा की बात चली । फेसबुक यूसर्स मे तो कमेन्ट भी चले की दामिनी को इलाज के लिए सिंगापूर भेजा तो बलात्कारिओ को सजा के लिए सऊदी अरब भेज दो । वैसे तो सभी बातें अपनी जगह सही है, लोगो का गुस्सा जैसे भी फूटा उसके सामने प्रश्न नहीं कर सकते। करना भी नहीं चाहए । लेकिन विरोध और प्रदर्शन कब तक ? बलात्कार और घरेलू हिंसा जैसे महिलाओ पे हो रहे अत्याचारों को रोकने के लिए सिर्फ विरोध प्रदर्शन ही काम मे नहीं आते ।
इस घटना के आसपास भी कुछ बातें हुई जिसका जिक्र करना शायद अनावश्यक नहीं होंगा। जैसे ही दिल्ही की ये घटना घटी तुरंत एक पुरानी बहस चल पड़ी की दिल्ही पुलिस किसके अंडर मे है ? राज्य सरकार या केंद्र सरकार ? शीला दीक्षित और दिल्ही के पुलिस कमिश्नर आमने सामने आ गए । कही बात चली की दिल्ही की पुलिस वी. आई. पी. सुरक्षा मे व्यस्त होती है । देश की राजधानी दिल्ही को क्राइम केपिटल बता कर अपनी ज़िम्मेदारी से पल्ला जाडने वाले लोग भी अपनी ज़िम्मेदारी से मुह ही तो फेर ते है ! पुलिस का कंट्रोल राज्य के पास हो या केंद्र के पास पुलिस अपना कार्य ठीक तरह से कर पाये ऐसा  माहोल बनाने से कोन रोकता है राज्य या केंद्र को ? और पुलिस को भी काम करने के लिए किसका कंट्रोल है और किसका कंट्रोल नहीं है उससे क्या फर्क पड़ता है ? वी.आई.पी.  सुरक्षा की वजह से आम लोगों को सुरक्षा नहीं मिलती अगर ये बात सही है तो दिल्ही पुलिस का कद 80000 से बढ़ाके 160000 क्यूँ नहीं हो सकता ? बस हमे बहाने चाहिए अपनी असफलताओ को छुपाने का ! घटना दिल्ही की है इसी लिए हम बात भी दिल्ही की कर रहे है बाकी बात आम है ।
एक लड़की और उसके दोस्त को सरेआम बस मे बंधक बनाके मारा पीटा लड़की के शरीर को तहस नहस कर दिया और टीवी और सेमीनारों मे चर्चाए क्या हो रही है ? देश के राष्ट्रपति का बेटा और खुद जो सांसद भी है कैसी भद्दी बातें कर रहा है ! “प्रदर्शन मे सुंदर सुंदर महिलाएं डेंटेड और पेंटेड होकर आती है ।“ तो किसी वैज्ञानिक महिला ने एक सेमिनार मे अपने ज्ञान का प्रदर्शन करते हुये कहा की अगर पीड़िता लड़की उन दरिंदों को सरेंडर हो जाती तो उसकी ऐसी हालत नहीं होती। उन महिला को कैसे समजाए की वह लड़की रोबोर्ट नहीं थी  शरीर के साथ   आत्मा भी था और आत्म सन्मान भी ! क्यूंकी ऐसी बेहूदा बात करने वाली भी महिला ही थी इसी लिए हम ये भी तो नहीं कह सकते की बहनजी कल या परसों भगवान न करे अगर आपके साथ ऐसा कुछ घटे तो आप अपनी ही नसीहत को मान लेना। एक  इंटेलिजन्ट व्यक्ति ने अपने फेसबुक पे लिखा की रेप की इस घटना के सामने विरोध प्रदर्शन इसलिए हो रहे है क्यूँ की प्रदर्शन कर ने वाले लोग नरेंद्र मोदी को प्रधान मंत्री बनाना चाहते है ।  ऐसा नहीं लगता सब ने मिलकर एक पीड़ित महिला का मजाक बना दिया है ? कही गुनहगारों को फांसी की सजा के कानून बनाने का विरोध मानव अधिकारो के नाम पे किया जाता है पता नहीं ये लोग दानव और मानव मे फर्क कब समजेगे ? ये मानव अधिकार की बातें करके अपनी दुकान चलाने वाले पता नहीं बलात्कारियों, हत्यारों, देशद्रोहियों और आतंकवादियों के अधिकारों के लिए ही क्यूँ चिंतित रहेते है ? अपराध के सामने लड़ने वाले पुलिस ओफिसर्स, अपराध को जेलने वाले पीड़ितो और आम जनता के मानव अधिकारो की चिंता ये लोग क्यूँ नहीं करते ! पूछना चाहिए उनको ।और आम समाज को भी अपनी आंखे खोलनी चाहिए, हम सब हर बात पे कड़े से कड़े कानून की वकालत करने लगते है, हम ऐसा मानने लगे है की कानून ही अपराध को खतम कर देगा । हम भूल जाते है कानून बनाने वाले भी हम  है और कानून का सही उपयोग कर अपराधी को दंड तक पहोचने वाले भी हम ही है । अगर हम ही ऐसे जघन्य अपराधों के सामने उठ खड़े नहीं होंगे तो कानून मे जीवनभर जैल का प्रावधान हो या फांसी का,  फर्क क्या पड़ेगा ? इस बात का तात्पर्य भी दिल्ही की घटना से ही आया है । जब दरिंदों ने लड़की और उसके मित्र को चलती बस से रास्ते पर फेंका तब लहू लुहान लड़के और वेदना से तड़प रही निर्वस्त्र लड़की को उठाके अस्पताल ले जाने की किसिकों फुर्सत नहीं थी । पुलिस के आने तक उस लड़की के बदन दो ढकने के लिए वस्त्र भी नहीं डाला किसिने ! हम किस मुह से अपराधियों को मृत्युदंड की बात कर सकेंगे जबतक हम कानूनी प्रक्रिया मे उलजने से डरते है !
अपराध कोई भी हो उस अपराधी को कड़ी से कड़ी सजा दिलाये ऐसे कानून की आवश्यकता को नकारा नहीं जाना चाहिए । सख्त कानून बने और हम भी अपराधी के डर से या कानूनी जमेले मे कौन फंसे  ऐसी मानसिकता से उभरे, तो शायद विरोध प्रदर्शन के साथ उठी आँधी कोई नई सुबह की और हमे ले जाएगी...... ।

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